Vastu Pooja Ka Mahatva वास्तु पूजन और वास्तु हवन का महत्व 

भारतीय संस्कृति में वास्तु का महत्व बहुत उच्च माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर और कार्यस्थल की सही वास्तु संरचना और आव्यूह हमारे जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालती है। इसलिए, वास्तु पूजन और वास्तु हवन जैसे परंपरागत धार्मिक आचरण भी वास्तु के सही और सकारात्मक उपाय करने का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

आज के लेख में आपको संपूर्ण वास्तु पूजन और हवन विधि प्रस्तुत करूँगा – जिससे कोई भी व्यक्ति अपने घर, ऑफिस या फैक्ट्री में वास्तु पूजन और वैदिक हवन संपन्न कर सकता है ।पहले यह विवेचन करते है कि वास्तु पूजन क्या होता है और इसकी महत्ता क्या है वैदिक ग्रंथो में ?

Vastu Pooja Kya Hai ? वास्तु पूजन क्या है?

वास्तु पूजन एक प्राचीन धार्मिक प्रथा है जिसमें घर या कार्यालय के निर्माण के पहले उस जगह की पूजा की जाती है जहाँ भविष्य में भगवान की आस्तीवास की जाएगी। यह पूजा वास्तु दोषों को दूर करने, भविष्य में खुशहाली और समृद्धि की प्राप्ति के लिए की जाती है।

Vastu Pooja Ki Visheshtaye वास्तु पूजन की विशेषताएँ:

1. शुभ मुहूर्त में पूजा: वास्तु पूजन को शुभ मुहूर्त में किया जाता है, जो भविष्य में शुभ फल के लिए महत्वपूर्ण होता है।

2. मन्त्र और अनुष्ठान: पंडित या विशेषज्ञ वास्तु शास्त्र के अनुसार मंत्रों और अनुष्ठान का आयोजन करते हैं जो दोषों को नष्ट करने और स्थान को शुद्ध करने में मदद करते हैं।

3. ध्यान और समर्पण:वास्तु पूजन में ध्यान और समर्पण की भावना होती है, जो स्थान को पवित्र और सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है।

Vastu Pooja aur Havan Kya hai वास्तु हवन क्या है?

वास्तु हवन एक और प्राचीन प्रथा है जिसमें अग्नि की पूजा की जाती है। इसमें धुप, धूम्रपान, गुग्गुल, घी, और समाग्री का उपयोग किया जाता है जो स्थान की शुद्धि और शुभता के लिए होता है।

Vastu Havan Ke Labh वास्तु हवन के लाभ:

1. दोष निवारण: वास्तु हवन दोषों को नष्ट करने में मदद करता है और स्थान की नकारात्मक ऊर्जा को हटाता है।

2. ऊर्जा संतुलन:यह  हवन स्थान के ऊर्जा को संतुलित करता है और प्राकृतिक संरचना की ऊर्जा को बढ़ाता है।

3. शुभता की प्राप्ति:वास्तु हवन स्थान को शुद्ध और शुभ बनाने में मदद करता है, जो खुशहाली और समृद्धि प्रदान करता है ।

Vastu Pooja Vidhi वास्तु पूजन और हवन विधि 

शुद्धि मंत्र : ॐ हां ही हूँ हाँ ह: पच्च परमेष्ठिभ्यः अमृतजलेन भूमि सुद्धिम करोमि ।।

जल को इस मन्त्र सिचित कर सब जगह एवं सामग्री , पर डाले  ।

Vastu Pooja and Mangalastak मंगलाष्टक for Jain Devotees

श्री पंचपरमेष्ठी वंदन

अरिहन्तो-भगवन्त इन्द्रमहिता: सिद्धाश्च सिद्धीश्वरा:,
आचार्या: जिनशासनोन्नतिकरा: पूज्या उपाध्यायका:|
श्रीसिद्धान्त-सुपाठका: मुनिवरा: रत्नत्रयाराधका:,
पंचैते परमेष्ठिन: प्रतिदिनं कुर्वन्तु ते मंगलम्||

श्रीमन्नम्र – सुरासुरेन्द्र – मुकुट – प्रद्योत – रत्नप्रभा
भास्वत्पाद – नखेन्दव: प्रवचनाम्भोधीन्दव: स्थायिन:|
ये सर्वे जिन-सिद्ध-सूर्यनुगतास्ते पाठका: साधव:,
स्तुत्या योगीजनैश्च पंचगुरव: कुर्वन्तु ते मंगलम् ||१||

अर्थ- शोभायुक्त और नमस्कार करते हुए देवेन्द्रों और असुरेन्द्रों के मुकुटों के चमकदार रत्नों की कान्ति से जिनके श्री चरणों के नखरूपी चन्द्रमा की ज्योति स्फुरायमान हो रही है। और जो प्रव- चन रूप सागर की वृद्धि करने के लिए स्थायी चन्द्रमा हैं एवं योगिजन जिनकी स्तुति करते रहते हैं, ऐसे अरिहन्त सिद्ध आचार्य उपाध्याय और साधु ये पाँचों परमेष्ठी तुम्हारे पापों को क्षालित करें तुम्हें सुखी करें ।। १ ।।

सम्यग्दर्शन – बोध – वृत्तममलं रत्नत्रयं पावनं,
मुक्तिश्री – नगराधिनाथ – जिनपत्युक्तोऽपवर्गप्रद:|
धर्म-सूक्तिसुधा च चैत्यमखिलं चैत्यालयं श्रयालयं,
प्रोक्तं च त्रिविधं चतुर्विधममी कुर्वन्तु ते मंगलम् ||२||

नाभेयादि जिनाधिपास्त्रिभुवन ख्याताश्चतुर्विंशति:,
श्रीमन्तो भरतेश्वर – प्रभृतयो ये चक्रिणो द्वादश |
ये विष्णु – प्रतिविष्णु – लांगलधरा: सप्तोत्तरा विंशति:,
त्रैकाल्ये प्रथितास्त्रिषष्टिपुरुषा: कुर्वन्तु ते मंगलम् ||३||

अर्थ- तीनों लोकों में विख्यात और बाह्य तथा आभ्यन्तर लक्ष्मी सम्पन्न ऋषभनाथ भगवान आदि चौबीस तीर्थंकर, श्रीमान् भरतेश्वर आदि १२ चक्रवर्ती, नव नारायण नव प्रतिनारायण और नव बलभद्र ये ६३ शलाका महापुरुष तुम्हारे पापों का क्षय करें और तुम्हें सुखी करें ।। ३ ।।

ये सर्वोपधिऋद्धयः सुतपसां वृद्धिंगताः पञ्च ये,
ये चाष्टांगमहानिमित्त – कुशलाश्चाष्टौ वियच्चारिणः ।
पञ्चज्ञानधरास्त्रयोऽपि बलिनो ये बुद्धिऋद्धीश्वराः,
सप्तैते सकलार्चिता मुनिवराः कुर्वन्तु ते मङ्गलम् ।।४।।


अर्थ- सभी औषधि ऋद्धिधारी, उत्तम तप ऋद्धिधारी, अवधृत क्षेत्र से भी दूरवर्ती विषय के आस्वादन दर्शन स्पर्शन घ्राण और श्रवण की समर्थता की ऋद्धि के धारी, अष्टाङ्ग महानिमित्त विज्ञता की ऋद्धि के धारी, आठ प्रकार की चारण ऋद्धि के धारी, पांच प्रकार के ज्ञान की ऋद्धि के धारी, तीन प्रकार के बलों की ऋद्धि के धारी और बुद्धि-ऋद्धीश्वर, ये सातों जगत्पूज्य गणनायक तुम्हारे पापों को क्षालित करें और तुम्हें सुखी बनावें बुद्धि, क्रिया, विक्रिया, तप, बल, औषध, रस और क्षेत्र के भेद से ऋद्धियों के आठ भेद हैं ।।४।।

ज्योतिर्व्यतरभावनामरगृहे मेरौ कुलाद्रौ स्थिताः,
जम्बूशाल्मलि चैत्यशाखिषु तथा वक्षार – रूप्याद्रिषु ।
इष्वाकारगिरौ च कुण्डलनगे द्वीपे च नन्दीश्वरे,
शैले ये मनुजोत्तरे जिनगृहाः कुर्वन्तु ते मङ्गलम् ।।५।।

अर्थ- ज्योतिषी, व्यंतर, भवनवासी और वैमानिकों के आवासों के, मेरुओं, कुलाचलों, जम्बू वृक्षों और शाल्मलिवृक्षों, वक्षारों, विजयार्ध पर्वतों इष्वाकार पर्वतों, कुण्डल पर्वत, नन्दीश्वर द्वीप, और मानुषोत्तर पर्वत (तथा रुचिक वर पर्वत) के सभी अकृत्रिम जिन चैत्यालय तुम्हारे पापों का क्षय करें और तुम्हें सुखी बनावें ।।५।।

कैलासे वृषभस्य निर्वृति मही वीरस्य पावापुरी,
चम्पायां वसुपूज्य-सज्जिनपतेः सम्मेदशैलेऽर्हताम्
शेषाणामपि चोर्जयन्तशिखरेनेमीश्वरस्यार्हतो,
निर्वाणावनयः प्रसिद्धविभवाः कुर्वन्तु ते मङ्गलम् ।।६।।

अर्थ- भगवान ऋषभदेव की निर्वाणभूमि-कैलाश पर्वत पर है। महावीर स्वामी की पावापुर में है। वासुपूज्य स्वामी की चम्पापुरी में है। नेमिनाथ स्वामी की ऊर्जयन्त पर्वत के शिखर पर और शेप बीस तीर्थकरों की निर्वाणभूमि श्री सम्मेदशिखर पर्वत पर हैं. जिनका अतिशय और वैभव विख्यात है। ऐसी ये सभी निर्वाण भूमियाँ तुम्हें निष्पाप बनादें और तुम्हें सुखी करें ।।६।।

यो गर्भावतरोत्सवो भगवतां जन्माभिषेकोत्सवो,
यो जातः परिनिष्क्रमेण विभवो यः केवलज्ञानभाक् ।
यः कैवल्यपुर – प्रवेशमहिमा सम्पादितः स्वर्गिभिः
कल्याणानि च तानि पञ्च सततं कुर्वन्तु ते मङ्गलम् ।।७।।

अर्थ- तीर्थंकरों के गर्भकल्याणक, जन्माभिषेक कल्याणक, दीक्षा कल्याणक, केवलज्ञान कल्याणक और कैवल्यपुर प्रवेश (निर्वाण) कल्याणक के देवों द्वारा सम्भावित महोत्सव तुम्हें सर्वथा माङ्गलिक रहें ।।७।।

सर्पोहार-लता भवति असिलता, सत्पुष्पदामायते,
सम्पद्येत रसायनं विषमपि प्रीतिं विधत्ते रिपु:|
देवा: यान्ति वशं प्रसन्नमनस: किं वा बहु ब्रूमहे,
धर्मादेव नभोऽपि वर्षति नगै: कुर्वन्तु ते मंगलम् ||८||

अर्थ- धर्म के प्रभाव से सर्प माला बन जाता है, तलवार फूलों समान कोमल बन जाती है, विष अमृत बन जाता है, शत्रु प्रेम करने वाला मित्र बन जाता है और देवता प्रसन्न मन से धर्मात्मा के वश में हो जाते हैं। अधिक क्या कहें धर्म से ही आकाश से रत्नों की वर्षा होने लगती है वही धर्म तुम सबका कल्याण करे ।।८।।

इत्थं श्रीजिनमङ्गलाष्टकमिदं सौभाग्यसंपत्करम्
कल्याणेषु महोत्सवेषु सुधियस्तीर्थंकराणांमुपः ।
ये शृण्वन्ति पठन्ति तैश्च सुजनै – र्धर्मार्थकामान्विता,
लक्ष्मीराश्रयते व्यपायरहिता निर्वाणलक्ष्मीरपि ।।९।।

अर्थ-
सौभाग्यसम्पत्ति को प्रदान करने वाले इस श्री जिनेन्द्र- मङ्गलाष्टक को जो सुधी तीर्थंकरों के पंचकल्याणक के महोत्सवों के अवसर पर तथा प्रभातकाल में भावपूर्वक सुनते और पढ़ते हैं, वे सज्जन धर्म, अर्थ और काम से समन्वित लक्ष्मी के आश्रय बनते हैं और पश्चात् अविनश्वर मुक्तिलक्ष्मी को भी प्राप्त करते हैं ।।९।।

Vastu Pooja aur Swastik Mantra स्वस्तिक मंत्र For Hindu Devotee

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

दिशाबंधन (सरसो दिशाओं में पोके)

ॐ हां, णमो अरिहंताण, हां पूर्व दिशात आगत विधनान् निवारय निवारय मां रक्ष रक्ष हुम फट् स्वाहा ।

ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं हीं दक्षिण दिशात आगत विनान “निवारय निवारय मां रक्ष रक्ष हुम फट् स्वाहा।

ॐ हूं णमो आयरियाणं हूं पश्चिम दिशात आगत विघ्नान निवारय निवारय मां रक्ष रक्ष हुम फट् स्वाहा।

ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणं हौं उतरा दिशात आगंत विनान् “निवारय निवारय मां रक्ष रक्ष हुम फट् स्वाहा।

ॐ हः णमो लोए सव्व साहूणं हः सर्वदिशात आगत निवारय निवारय मां रक्ष रक्ष हुम फट् स्वाहा।


वृहद शान्तिमंत्र पाठ

ॐ नमोहिते भगवते प्रक्षीणा शेषदोष कल्मषाय दिव्य तेजोमूतये नमः श्रीशांति नाथाय शांतिकराय सर्व विघ्न प्रणाशनाय सर्व रोगाप मृत्यु विनाशनाय सर्वपरकृच्छुद्रोप द्रव विनाशनाय सर्व क्षाम डामर विनाशनाय ॐ हो ह्रीं हुं ह्रौं ह: अ सि आ उ सा नमः सर्वशान्तिं कुरू कुरू स्वाहा ॥


रक्षा मंत्र (पीली सरसों क्षेपण करें।)


ॐ हूँ क्षू फट कीटम कीटम घातय घातय परविधनान् स्फोटय स्फोटय सहस्त्र खण्डान कुरु कुरु परमुद्रान छिन्द हिन्द परमंत्रान भिंद भिंद क्षां क्षः वः वः हुं फट् स्वाहा ॥

रक्षा सूत्र

रक्षा मंत्र बोलते हुए रक्षा सूत्रा (मौली (कलावा) स्त्री के बाये हाथ पर बांधो एवं पुरुष के दायें हाथ पर। 

कलश स्थापना

जल और कुंकुंम से ईशान कोण पर पीली मिट्टी पिली या सरसो से स्वातिक बनाये, निम्न मंत्र बोलते हुए

कलश स्थापना करो (देव स्थापना के दाहिनी ओर ) ॐ आधार शक्तिभ्यो नमः ॥”

मंगल पाठ करने के बाद सामने रखे हुए कलश का पूजन करेगें, उस पर कुंकुंम या केसर की ९ बिन्दिय लगाए, स्वातिक का चित्र अंकित करें।
कलश के अंदर एक सुपारी तथा एक सवा रुपया रखें। कलश के ऊपर नारियल को सफेद वस्त्र से ढक दें। और उस कलश के अंदर अबीर, गुलाल , जल डाले और फिर हाथ जोड़कर प्रार्थना करें।

कलश स्थापना मंत्र 

सरितः सागराः सकला तीर्थानि जलदा नदाः
आयान्तु यजमानस्य। दुरितक्षय कारकाः

कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः 

मूले तत्र स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता: 

कुक्षौ तु सागराः सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा: 

ऋग्वेदोऽथ युजर्वेदः सामवेदो हार्थर्वण: 

अंगैश्च सहिता सर्वेः कलशं तु समाश्रिताः 

देवदानव संवाद मध्यमाने महोदधौ

उत्पन्नेसि तदा कुंभ विधृतो विष्णुना स्वयम् 

त्वत्तोये सर्व तीर्थानि देवाः सर्वे त्वयि स्थिताः

यह बोलकर अक्षत को कलश के ऊपर छोड़ दें तथा गन्धाक्षत, पुष्प से कलश की पूजा करके कलश के ऊपर हाथ रखकर वरुण मंत्र बोले।

वरुण मंत्र

ॐ वरुण स्योतम्भ नमसि वरुणस्य स्कम्भ सर्जनीस्थ्यों वरुणस्य ऋत सदन्यसि वरुणस्य ऋत सदनमसि वरुणस्य ऋत सदमा मासीद ॥

ॐ भूर्भुवः स्वः अस्मिन् कलशे वरुणम साग सपरिवारम सायुधं सशक्तिकम आवाहयमि, पूजयामि सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि ॥

गन्धाक्षता, पुष्प, जल में डालकर तीर्थों आवाहन करें।

गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेस्मिन् सन्निधि कुरू ॥

कलश प्रार्थना

देव दानव संवाद मध्यमाने महोदधौ। उत्पन्नोसि तदाकुम्भ विघृतो विष्णुना स्वयम् ॥

त्वत्तोये सर्व तीर्थानि देवाः सर्वे त्वयि स्थिता: त्वयि तिष्ठनि भूतानि त्वयि प्राणाः प्रतिष्ठिताः॥

आदित्या वसवो रुद्रा विश्वे देवाः सपैतका: त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेपि यतः काम फल प्रदा:॥

त्वत्प्रसादा दिमां पूजां कर्तुमी हे जलोद्भव।सान्निध्यं कुरु मे देव  प्रसन्नो भव सर्वदा ॥

प्रसन्नो भवः। वरदो भव । अन्या पूजया वरुणाधा वाहिता। देवता प्रीयन्तां न मम॥

दीपक स्थापना एवं पूजन (अग्निहोत्र मन्त्र)

दीपक को प्रज्वलित करके, बाजोट पर चंदन से त्रिकोण बनाकर उस पर प्रतिष्ठिता करें तथा

गंध – अक्षत, पुष्प से मंत्रो द्वारा पूजन करें।

ॐ सूर्यो ज्योतिर्ज्योति: सूर्य: स्वाहा ।।१।।

ॐ सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्च: स्वाहा ।।२।।

ॐ ज्योति: सूर्य: सूर्यो ज्योति: स्वाहा ।।३।।

ॐ सजूदेर्वेन सवित्रा सजूरुषसेन्द्रवत्या ।

जुषाण: सूर्यो वेतु स्वाहा ।।४।।


*ॐ सूर्यो ज्योतिर ज्योतिः सूर्य: स्वाहा ।।१।।

ॐ सूर्यो वर्चो ज्योतिर वर्चः स्वाहा ।।२।।

ॐ ज्योति: सूर्य: सूर्यो ज्योति: स्वाहा ।।३।।

ॐ सजूर देवेन सवित्रा सजू रुषस एन्द्र वत्या । जुषाण: सूर्यो वेतु स्वाहा ।।४।।

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ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा ।।१।।

ॐ अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्चः स्वाहा ll २ ll

ॐ अग्निर्ज्योतिर्ज्योतिरग्निः स्वाहा ।।३।।

ॐ सजुर्देवेन सवित्रा सजूरात्येंद्रवत्या जुषाणो अग्निर्वेतु स्वाहा ।।४।।


*ॐ अग्निर ज्योतिर ज्योतिर अग्नि: स्वाहा ।।१।।

ॐ अग्निर वर्चो ज्योतिर वर्चः स्वाहा ।।२।।

ॐ (अग्निर ज्योतिर ज्योतिर अग्निः ) स्वाहा ।।३।।

(जो bracket में है ,उसे मौन रूप से मन में बोलना है )

ॐ सजूर देवेन सवित्रा सजू रात्र्येन्द्र वत्या । जुषाणो अग्निर वेतु स्वाहा ।।४।।

प्रथम वाला मंत्र सूर्य भगवान को समर्पित है ।जब यज्ञ प्रातःकाल किया जाता है तो इस मंत्र के साथ आहूति डालते हैं । दूसरा वाला मन्त्र अग्नि भगवान को समर्पित है ।जब संध्याकाल में यज्ञ करते हैं तो इस मंत्र के साथ आहूति डालते हैं ।

Vastu Havan

प्रार्थना

ॐ हिरण्या- गर्भाभ्यां नमः। 

ॐ शची पुरन्दराभ्यां नमः। 

ॐ मातृ पितृ चरण कमलेभ्यो नमः। 

ॐ कुलदेवताभ्यो नमः। 

ॐ इष्ट देवताभ्यो नमः। 

ॐ ग्राम देवताभ्यो नमः ।

ॐ स्थान देवताभ्योर नमः ।

ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
ॐ स्थाना देवताभ्यो नमः।

ॐ सर्वेभ्यो तीर्थेभ्यों नमः।
ॐ सर्वेभ्यो देवशक्तिभ्यो नमः।
ॐ सर्वेभ्य आदित्येभ्यो नम:।
ॐ सर्वाभ्यो मातृशक्तिभ्यों नमः।

संकल्प

साधक. हाथ में जल लेकर संकल्प ले-

ॐ विष्णु विष्णु विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्रीब्रह्मणः द्वितीय परार्द्ध श्वेतवाराहे कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलि प्रथम चरणे …जम्बूद्वीपे भारतवर्षे, अमुक क्षेत्र (state name) अमुक नगरे (State City name) अमुक नाम (अपना नाम बोले), अमुक नाम संवत्सरे (State name of Samvat ),अमुक अयने (उत्तर/ दक्षिण) अमुक मासे (State month), अमुक पक्षे (शुक्ला/ कृष्णा) अमुक पुण्यतिथौ, अमुक

वासरे (वार का नाम लें) सर्वेषु ग्रहेषु यथायथां राशि स्थान स्थितेषु, अमुक नाम (यजमान, अपना नाम लें) अमुक गोत्रोत्पन्नोहम्, अमुक देवता (वास्तु देवता पूजन: एवम् वास्तु यज्ञः) प्रीव्यर्थे यथा ज्ञानमू यथा मिलितो पचारे: पूजनम् करिष्ये, तदङ्गत्वेन हवि कर्म च करिष्योंः ॥

अग्नि प्रज्वलन

( सगुण में चन्द्र स्वर या पृथ्वी तत्व में अग्नि प्रज्वलन करें – स्वर समझ न आये तो केवल श्वास खीच कर रोककर – अग्नि कुण्ड में दीप जलाये।) 

वास्तु पूजन

सामग्री- 

49 पान के पत्तो  

49 आटे के दीप

गाय का घी का दीपक

पीली सरसों

गुड़ की डलियां (49)

खाली दीपका (बड़ा-सा )

अब एक बड़े दीपक में (खाली हो) रंगोली (Green + Yellow  Colour) से Triangle बनाकर उस पर दीप स्थापित कर, उस प्रत्येक मंत्र बोलकर यदि । संभव हो सौभाग्यवति स्त्री । या अपनी पत्नी के हाथो से पीली सरसों उस दीपक में डालते रहे।

ॐ णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं. हौं। सर्व शान्तिं कुरू कुरू स्वाहा ।।

ॐ ह्रीं अक्षीण महान सरिद्धभ्यो नमः स्वाहा। ॐ ह्रीं अक्षीण महाल यरिद्धभ्योनमः स्वाहा। ॐ ह्रीं दश दिशातः आगत विघ्नान् निवारय निवारय सर्व रक्ष रक्ष हुम फट् स्वाहा।

ॐ ह्रीं दुर्मुहूर्त – दुःशकुनादिकृतोपद्रव शांति कुरू कुरू स्वाहा ।

ॐ ह्रीं परकृत – मंत्र तंत्र डाकिनी शकिंनी भूत पिशाचादि कृतो उपद्रव शांति कुरु कुरु स्वाहा ॐ ह्रीं वास्तुदेवेभ्यः स्वाहा।

ॐ ह्रीं सर्व विघ्नो पशांन्तिम कुरू कुरू स्वाहा।

ॐ ह्रीं सर्वाधि व्याधि शांतिम कुरु कुरु स्वाहा।

ॐ ह्रीं सर्वत्र क्षेमं आरोग्यतां विस्तारय विस्तारय सर्व दृष्टं पुष्टं प्रसन्नचितं कुरु कुरु स्वाहा।

ॐ ह्रीं यजमानादीनां (यजमान अपना नाम लें ) सर्व सङ्घस्य शांति तृष्टिम पृष्टिम ऋद्धिं वृद्धिं समृद्धि अक्षीण पुत्र – पौत्रादि वृद्धिम  आयु वृद्धि धन धान्य समृद्धि धर्म वृद्धिम् कुरू कुरू स्वाहा। 

ॐ क्षां क्षीं क्षूं क्षें क्षैं क्षों क्षौं क्षं क्षः। नमोऽहते सर्व रक्ष रक्ष हुम फर स्वाहा 

ॐ भूर्भुवः स्व नमः स्वाहा ।

ॐ ह्रीं क्रौं आं अनुत्पन्नानाम् द्रव्याणा मृत्पादकाम उत्पन्नानाम् द्रव्यणां वृद्धिकराय चिन्तामणि पार्श्वनाथाय वसुदाय नमः स्वाहा।

45 Devta Pujan

(दीप स्थापन करते सगुण स्वर में ) ।
अब एक पात जिससे मारना भी कहते है  (Wooden Plank) पर 7 X 7 = ४९ Boxes बनाकर Green Paint या रंगोली से) फिर प्रत्येक देवता को १-१ वास्तु मंत्र से दीप + गुड़ + पान पत्ता + सरसो अर्पित करेंगे ।

वास्तु मंडल – मारना के 4 द्वारपाल सहित वास्तु पुरुष मंडल के 49 देवताओं के स्थान के लिए बनाया गया है। वास्तु पुरुष मंडल के 4 द्वारपाल सहित इन 49 देवताओं को प्रसन्न करने और उन्हें प्रसाद चढ़ाने के लिए अलग-अलग अनाज रखना पड़ता है।और प्रत्येक देवता के दीप को उसके बताये गए क्रम के अनुसार स्थापना करनी चाहिए ।

भो इन्द्र- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।। 1 ।।
भो अग्नि- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा || 2 ||
भो यम – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा || 3 ||
भो नैऋत्य- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥4॥
भो वरुण – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा || 5 ||
भो पवन – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥16 ॥
भो कुबेर – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 7 ॥
भो ऐशान – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥8 ॥
भो आर्य- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 9 ॥
विवस्वान्-वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 10 ॥
भो मित्र – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 11 ॥
भो भूधर – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 12 ॥
भो शचीन्द्र – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 13 ॥
भो प्राचीन्द्र – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 14 ॥
भो इन्द्र-वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 15 ॥
भो इन्द्रराज – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥16 ॥
भो रुद्र – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 17 ॥
भो रुद्र – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 18 ॥
भो आप – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 19 ॥
भो आपवत्स – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥20 ॥
भो पर्जन्य- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 21 ॥
भो जयन्त – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 22 ॥

भो भास्कर – वास्तुदेव वास्तुशान्ति कुरु कुरु स्वाहा ||23||
भो सत्य वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ||24||
भो भृश वास्तुदेव वास्तुशान्ति कुरु कुरु स्वाहा || 25 |
भो अन्तरीक्ष- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥26॥
भो पुष्प- वास्तुदेव वास्तुशान्ति कुरु कुरु स्वाहा ॥ 27 ॥
भो वितथ- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥28॥
भो राक्षस- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 29 ॥
भो गन्धर्व – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥30॥
भो भृङ्गराज- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥31 ||
भो मृषदेव – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा | 32 ||
भो दौवारिक – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ||33 ||
भो सुग्रीव – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा | 34 ||
भो पुष्पदन्त – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥35॥
भो असुर- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा || 36 ||
भो शेष – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥37॥
भो रोग – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥38 ॥
भो नागराज – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥39॥
भो मुख्य – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥40॥
भो भोभल्लारक- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 41 ॥
भो भृंग – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 42 ॥
भो आदित्य – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥43 ॥
भो उदित – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥44 ॥
भो विचारदेव – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।। 45 ॥
भो पूतना – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ||46 ||
भो पापराक्षसी – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥47 ॥
भो चरकी – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥48 ॥
भो ब्रह्मदेव – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 49 ॥

वास्तु हवन विधान 

दिशा – उत्तर दिशा की तरफ मुख हो।।

सामग्री- हवन कुण्ड

लकडी (आम की हो)

हवन सामग्री।

गाय का घी।।

कपूर

१ सुपारी या १ लघु नारियल

यजमान और बाकी घर के सदस्य जो हवन में भाग ले रहे अपने अपने सिर ढक लें। कलाई पर मौली बांधी हुई हो और यजमान  से ही घी की आहुति दिलाये और अन्य लोग केवल हवन सामग्री (अंगुष्ठ + मध्यमा + अनामिका ऊगली ) से आहुति करे।

हवन में विषम संख्या में बैठे ।

अग्नि स्थापना मंत्र

निम्नलिखित मंत्रो से ३ पुष्प गुच्छा द्वारा अग्नि को आसन प्रदान करें – और एक चम्मच से 1 अथवा घी में भीगी हुई रूई की मोटी बत्ती जलाकर कुण्ड में अग्नि प्रज्वलित कर ।

त्वमादिः सर्वभूतानां संसारार्णवतास्क: परमज्योति स्वरूप स्त्वमासनं सफली कुरु ।

वैश्वानर नमास्तेस्तु नमस्ते हव्यवाहन। स्वागतम सुरश्रेष्ठ शांतिं कुरू नमोऽस्तु ते ।।

ॐ अग्नये नमः अग्निम् आवाहयामि स्थापयामि , पूजयामि गंध अक्षत, पुष्पाणि, धूपं दीपं नैवेध समर्पयामि ।।

अग्नि प्रदीपन मंत्र – ॐ अं अग्नये नमः ऊर्ध्वमुखी भव

अग्नि चैतन्य मंत्र – ॐ अं अग्नये नमः चैतन्यो भव

समिधाधानम्

यज्ञ कुण्ड में अग्नि प्रज्वलित होने पर पतली छोटी चार समिधायें घी में डुबोकर, निम्न मंत्रोच्चारण कर एक-एक करके चार बार समिधा डालें।

१.ॐ अयन्त इहम आत्मा जातवेद स्तेने घ्यस्व वर्धस्व। चेद वर्धय चासमान, प्रजया पंशुभि ब्रह्मवर्चसे नान्नाहोन समेधय स्वाहा। – धी आहुति दें। ( इदं अग्नये जातवेदसे इदम् न नमः) अब जल से आहुति  दें।


२.ॐ समिधाग्निं दुवस्यता घृताबोध यता तिथीम्। अस्मिन् हत्या जुहोतन स्वाहा। – धी आहुति दें। (इदमंग्यये जात वेद से इदम् न नमः) अब जल से आहुति  दें।


३. ॐ सुसमिद्धाय शो चिसे घृतं तीव्र जुहोतन। अग्नये जातवेदसे स्वाहा । – घी से आहुति दें । ( इदमग्नये जातवेदसों इदम न नमः) अब जल से आहुति दें।


४.ॐ तं त्वा समद्धि भिरंगिरो घृतेन वर्धयामास बृहच्छोचा यविष्ठाय स्वाहा ।-  घी से आहुति दें। (इदमग्नये अंगिरसे इदं न मम) – अब जल से आहुति दें।

गणेश मंत्र आहुति : ॐ गं गणपतये नमः स्वाहा

गुरु मंत्र आहुति:  ॐ गुरुवे नमः स्वाहा अथवा शिव मंत्र : ॐ शिवाय स्वाहा । 

भूमि जागरण मंत्र आहुति:ॐ ह्रां ह्रीं हूं हीं हः मम भूमि क्षेत्रे धरित्रीम जागृतावस्थायां कुरु कुरु स्वाहा ॥


वृहद शांतिमंत्र 

ॐ नमोऽहते भगवते प्रक्षीणा शेष दोष कल्मषाय दिव्य तेजो मूर्तये नमः ॥


श्री शांतिनाथाय शांतिकराय सर्व विध्न  प्रणाशनाय सर्व रोगाप मृत्यु विनाशनाय  सर्वपर कृच्छु, द्रोपद्रव विनाशनाय सर्व क्षाम डामर विनाशानाय ॐ ह्रां ह्रीं हूँ हैं ह: अ सि आ उ सा नम: सर्व शांतिम कुरु कुरु स्वाहा ॥


जैन महामृत्युजय मंत्र 

ॐ हां णमो अरिहंताणं ॐ ह्रीं णमो सिद्धानम् ॐ हूं णमो आइरियाणां ॐ ह्रौं णमो उवज्झायाणम् ॐ ह: णमो लोए सव्व साहूण मम सर्वग्रह रिष्ठान निवाराय निबाराय अपमृत्युम घाताय घाताय सर्वशांतिम कुरु कुरु स्वाहा॥


आदिनाथ मंत्र

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं बड़े बाबा अर्ह नमः स्वाहा

अब ९ बार नवकार मंत्र मन ही मन जाप करें।


रक्षा मंत्र

ॐ हूं क्षू फट् कीटम कीटम घातय, घातय परविधनान् स्फोटय स्फोटय सहस्त्र, खण्डान कुरू कुरू परमुद्रान छिन्द छिन्द परमंत्रान भिंद भिंद परमंत्रान भिंद भिंद क्षां क्षः वः वः हम फट् स्वाहा ।।

45 Devta Pujan Mantra

भो इन्द्र- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।। 1 ।।
भो अग्नि- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा || 2 ||
भो यम – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा || 3 ||
भो नैऋत्य- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥4॥
भो वरुण – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा || 5 ||
भो पवन – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥16 ॥
भो कुबेर – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 7 ॥
भो ऐशान – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥8 ॥
भो आर्य- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 9 ॥
विवस्वान्-वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 10 ॥
भो मित्र – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 11 ॥
भो भूधर – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 12 ॥
भो शचीन्द्र – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 13 ॥
भो प्राचीन्द्र – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 14 ॥
भो इन्द्र-वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 15 ॥
भो इन्द्रराज – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥16 ॥
भो रुद्र – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 17 ॥
भो रुद्र – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 18 ॥
भो आप – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 19 ॥
भो आपवत्स – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥20 ॥
भो पर्जन्य- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 21 ॥
भो जयन्त – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 22 ॥

भो भास्कर – वास्तुदेव वास्तुशान्ति कुरु कुरु स्वाहा ||23||
भो सत्य वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ||24||
भो भृश वास्तुदेव वास्तुशान्ति कुरु कुरु स्वाहा || 25 |
भो अन्तरीक्ष- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥26॥
भो पुष्प- वास्तुदेव वास्तुशान्ति कुरु कुरु स्वाहा ॥ 27 ॥
भो वितथ- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥28॥
भो राक्षस- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 29 ॥
भो गन्धर्व – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥30॥
भो भृङ्गराज- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥31 ||
भो मृषदेव – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा | 32 ||
भो दौवारिक – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ||33 ||
भो सुग्रीव – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा | 34 ||
भो पुष्पदन्त – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥35॥
भो असुर- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा || 36 ||
भो शेष – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥37॥
भो रोग – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥38 ॥
भो नागराज – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥39॥
भो मुख्य – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥40॥
भो भोभल्लारक- वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 41 ॥
भो भृंग – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 42 ॥
भो आदित्य – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥43 ॥
भो उदित – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥44 ॥
भो विचारदेव – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ।। 45 ॥
भो पूतना – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ||46 ||
भो पापराक्षसी – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥47 ॥
भो चरकी – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥48 ॥
भो ब्रह्मदेव – वास्तुदेव वास्तुशान्तिं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 49 ॥

नवग्रह मंत्र : ॐ ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानू: साने शशि भूमि सुतो बुधश्च। गुरुश्च शुक्र-शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवतु ।।

नवग्रह शांति गायत्री मंत्र

सूर्य – ॐ भास्कराय विद्महे महातेजास धीमहि तन्नो: सूर्य: प्रचोदयात् ॥

चंन्द्र – ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे मृतात्वाय धीमहि तन्नोः चन्द्र: प्रचोदयात् ॥

मंगल – ॐ अंगारकाय विद्महेो वाणेशाय धीमहि तन्नो: भौम प्रचोदयात् ॥ 

बुध – ॐ सौम्य रूपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि तन्नो: बुध: प्रचोदयात् ॥

गुरू :- ॐ गुरुदेवाय विद्महे वाणेशास धीमहि तन्नो:गुरु: प्रचोदयात् ॥

शुक्र: – ॐ भृगु सुताय विद्महे दिव्य देहाय धीमहिं तन्नो: शुक्र प्रचोदयात् ॥ 

शनि-ॐ शिरोरुपाया विद्महेो मृत्युरूपाय धीमहि तन्नो: सौरि: प्रचोदयात्॥

राहू – ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो: राहू प्रचोदयात् ॥

केतू – ॐ गढ़ा हस्ताय विद्महे। अमृतेशाय धीमहि तन्नो: केता: प्रचोदयात्॥

पूर्णाहुति

पात्र  में सुपारी या नारियल या लघु नारियल पर घीं लेकर चुटकी भर हवन सामग्री लें। और मंत्र के अंत में ” स्वाहा ” उच्चारण के साथ आहुति छोड़े।

पूर्णाहुति मंत्र 

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥ ॐ पूर्णादवि परापत सुपूर्णा पुनरापस। वस्नेय विक्रीणा वहा इषमूर्ज (गुम) शतक्रतो स्वाहा। ॐ सर्व वैं। पूर्ण एगूं) स्वाहा 

वसोधारा 

हवन सामग्री में बचा हुआ घी से तेलवात धारा, छोड़े हवन कुंड में तेलधारा छोड़े।

ॐ वसोः पवित्रमसि शतधार वसो: सहस्त्र धारम् । देवस्त्वा सविता पवित्रमसि पुनातु वसो: पवित्रेण शतधारणा सुप्वा कामधुक्षः स्वाहा ॥

भस्म धारण मंत्र (हवन कुंड से थोड़ी सी भस्म लेकर आज्ञा चक्र पर लगाये)

“ॐ त्र्यबकं यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्द्धनम् ऊर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

तदुपरांत हवन कुंड की Clockwise तीन बार प्रदशिणा करें। संभव हो तो इष्टदेव आरती करें।

क्षमा प्रार्थना मंत्र 

आवाहानं न जानामि नैव जानामि पूजनम् विसर्जनं नैव जानामि क्षमस्व, परमेश्वर ।।

मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि । यत्पूजितम् मया देवि । परिपूर्ण: तदस्तु

यदक्षरं पदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद् भवेत् । तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीदा परमेश्वरि ।।

शांति पाठ मंत्र  

कलशा के जल से पुष्प या आम्रपत्र द्वारा उपस्थित लोगों पर जल अभिसिंचन करें-

ॐ धो: शांतिरन्तरिक्षं) शान्तिः पृथिवी – शान्तिरापः शांति शेषधयः ‘शांति वनस्पतय शांति विश्वे देवा: शांतिब्रह्म शांतिः सर्व (गूं ), शांतिः शांतिरेव शांति: । सा मो शांतिरेधिध । ॐ शांति (३)

विसर्जन मंत्र

अब सभी आमंत्रित देवी देवता से प्रार्थना करे ( विसर्जन मंत्र के द्वारा ) कि , वो अपने अपने स्थान पर प्रस्थान करे  ।

गच्छ त्वं भगवन्नग्ने स्वस्थाने कुण्ड मध्यतः। द्रुतमादाय देवेभ्या: शीघ्रम देहि प्रसीद में ।

गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वर । यत्र ब्रह्मादयो देवा: तत्र गच्छ हुताशन ।

यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् । इष्टकाम समृद्ध यथम पुनरागमनाय च ॥

इस प्रकार यहाँ पर वैदिक वास्तु पूजन और वास्तु हवन समापन हुआ । आशा रखता हु कि मेरे इस अल्प प्रयाश से आपको उचित मार्गदर्शन प्राप्त हुआ होगा । 

आपका अपना ,

नीरव हींगु

वास्तु विद