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Hanuman ji Mantra Upsana Vidhi श्री हनुमान जी मंत्र उपासना

नारदपुराण में श्री हनुमान जी मंत्र उपासना की पूरी विधि सविस्तार बताई  गई  है । 

तुलसीदास जी ने श्री हनुमान जी को बल और बुद्धि के अतुलनीय देवता बताया है – यथा “जय हनुमान ज्ञान गुण सागर” – हे वीर हनुमान जी – आप ज्ञान  और गुणों  की  खान हैं  । 

इसीलिए न केवल भारत वर्ष में – अपितु पूरे विश्व में भगवान श्री हनुमान जी पूजा स्तुति-आरती प्रचलित है ।

हनुमान साधना या उपासना से साधक / साधिका को अदभुत बल, वीरता, शौर्य, और बुद्धि की प्राप्ति होती है। हनुमान साधना या उपासना में एक बात का विशेष ध्यान रखे – वह यह कि – पूरे तन-मन और वचन से सत्य बोलना और संपूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए  क्योंकि  हनुमान जी, भगवान शिव के अवतार हैं और ब्रह्मचर्य के प्रतीक माने गए है और इनकी उपासना का फल भी अदभुत मिलता है। 

आज मैं आपको  श्री हनुमान जी मंत्र की सरल विधि बताता  हूँ  जो मुझे मंत्र महोदधि से प्राप्त हुई है – जिसे कोई भी साधक या साधिका, किसी भी वर्ण, जाति या धर्म का व्यक्ति उपासना कर सकता है।

श्री हनुमान जी मंत्र विधि – Shree Hanuman ji Mantra Vidhi

मंत्र सिद्ध करने का विधि :

यह हनुमान जी का द्वादशाक्षर मन्त्र है। इसके ऋषि, श्री रामचंद्र जी है और छंद जगती है और इसके देवता श्री हनुमान जी स्वयं हैं। इसके अनुष्ठान की विधि और  १२,००० हज़ार मंत्र- मंत्र महोदधि में विस्तार से बताया गया है । श्री हनुमान जी का ध्यान मंत्र पढ़ने के बाद – १२ हज़ार मंत्र जाप करें। 

तत्पचात दूध – दही और घी को मिश्रित कर मंत्र के दसवें  भाग का हवन  करें  । नीचे मैंने हनुमान जी मंत्र का सम्पूर्ण न्यास-विन्यास विनियोग दिया है  – यह साधना काफ़ी  श्रम साध्य है , इसीलिए यह साधना कठिन होते हुए भी – सर्व श्रेष्ठ और देव दुलभ है ।

विनियोग: Shree Hanuman ji Mantra Viniyoga

अस्य श्रीहनुमन्मन्त्रस्य रामचन्द्रः ऋषिः जगती छन्दः,हनुमान् देवता, ह्स्रौं बीजं,ह्स्फ्रें शक्तिः, ममाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।

षडङ्ग एवं वर्णन्यास : Hanuman ji Mantra Nyasaa

मन्त्र के ६ बीजों से षडङ्गन्यास करना चाहिये तथा मन्त्र के (एक-एक) वर्ण का क्रमशः सिर,ललाट,नेत्र, मुख, कण्ठ, दोनों हाथ, हृदय, कुक्षि, नाभि, लिङ्ग, दोनों जानु एवं दोनों पैरों पर न्यास करना चाहिये।

षडङ्ग न्यास विधि : 

हौं हृदयाय नमः।

ह्स्फ्रें शिरसे स्वाहा।

ख्फ्रें शिखायै वषट्।

ह्स्रौं कवचाय हुम्।

ह्स्ख्फ्रें नेत्रत्रयाय वौषट्।

ह्स्रौं अस्त्राय फट्।

वर्णन्यास विधि : 

हौं नमः मूर्ध्नि । 

ह्स्फ्रें नमः ललाटे । 

ख्फ़्रें नमः नेत्रयोः । 

ह्स्रौं नमः मुखे । 

ह्स्ख्फ्रें नमः कण्ठे । 

ह्सौं नमः बाह्वो । 

हं नमः हृदि । 

नुं नम कुक्ष्योः। 

मं नमः नाभौ । 

तें नमः लिङ्गे । 

नं नमः जान्वोः। 

मः नमः पादयोः।


पदन्यास : Shree Hanuman ji Mantra Pad-Nyaas

मन्त्र के ६ बीजों एवं दोनों पदों का क्रमशः शिर, ललाट , मुख , हृदय , नाभि , ऊरु , जङ्घा एवं पैरों पर न्यास करना चाहिये।

पदन्यास विधि : Shree Hanuman ji Mantra Pad-Nyaas

हौं नमः मूर्ध्नि । ह्स्फ्रें नमः ललाटे । ख्फ्रें नमः मुखे । ह्स्रौं नमः हृदि । ह्स्ख्फ्रें नमः नाभौः । ह्सौं नमः ऊर्वो । हनुमते नमः जङ्घयोः । नमः नमः पादयोः।

उदीयमान सूर्य जैसी आभावाले , तीनों लोकों को क्षोभित करने वाले, सुन्दर ,सुग्रीव आदि वानर समुदाय से सेव्यमान चरणों वाले , अपने नाद से ही समस्त राक्षस-समुदाय को भयभीत करने वाले , अपने स्वामी भगवान् राम के चरणारविन्दों का सतत स्मरण करने वाले हनुमान जी का ध्यान करना चाहिये।

Shree Hanuman ji Mantra Dhyana

बालार्कायुततेजसंत्रिभुवनप्रक्षोभकं सुदरं

सुग्रीवादिसमस्तवानरगणैः संसेव्यपादाम्बुजम्।

नादेनैव समस्तराक्षसगणान्संत्रासयन्तं प्रभुं

श्रीमद्रामपदाम्बुजस्मृतिरतं ध्यायामि वातात्मजम्॥

पीठपूजा : Shree Hanuman ji Mantra Peeth-Pooja

विमलादि शक्तियों वाले पीठ पर हनुमान् का पूजन करना चाहिये।

पीठपूजा विधि : वृत्ताकार कर्णिका , फिर अष्टदल , फिर भूपुर सहित बने यन्त्र पर हनुमान् जी का पूजन करना चाहिये।

ध्यान के श्लोक में वर्णित श्रीहनुमान् जि के स्वरूप का ध्यान कर मानसोपचार से पूजन कर विधिवत अर्घ्यस्थापन कर निम्निलिखित मन्त्रों से निर्दिष्ट स्थान एवं दिशाओं में पीठ देवताओं का पूजन करना चाहिये 

यथा—पीठमध्ये — 

ॐ आधार शक्तये नमः । 

ॐ प्रकृतये नमः । 

ॐ कूर्माय नमः । 

ॐ अनन्ताय नमः । 

ॐ पृथिव्यै नमः । 

ॐ क्षीरसमुद्राय नमः । 

ॐ श्वेतद्वीपाय नमः । 

ॐ मणिमण्डपाय नमः । 

ॐ कल्पवृक्षाय नमः । 

ॐ मणिवेदिकायै नमः । 

ॐ रत्न-सिंहासनाय नमः ।

तदनन्तर आग्नेयादि कोणों मे निम्नलिखित मन्त्रों से धर्म आदि का तथा पूर्व आदि दिशाओं में अधर्म आदि का पूजन करना चाहिये, यथा—

ॐ धर्माय नमः आग्नेये । 

ॐ ज्ञानाय नमः नैऋत्ये । 

ॐ वैराग्याय नमः वायव्ये । 

ॐ ऐश्वर्याय नमः ईशान्ये । 

ॐ अधर्माय नमः पूर्वे ।

ॐ अज्ञानाय नमः दक्षिणे । 

ॐ अवैराग्याय नमः पश्चिमे । 

ॐ अनैश्वर्याय नमः उत्तरे ।

तत्पश्चात् पुनः पीठ के मध्य में निम्नलिखित मन्त्रों से अनन्त आदि का पूजन करना चाहिये,

यथा –

ॐ अनन्ताय नमः । 

ॐ पद्माय नमः । 

ॐ रं अं सूर्यमण्डलाय द्वादशकलात्मने नमः । 

ॐ उं सोममण्डलाय षोडशकलात्मने नमः । 

ॐ रं बह्निमण्डलाय दशकलात्मने नमः । 

ॐ सं सत्त्वाय नमः । 

ॐ रं रजसे नमः । 

ॐ तमसे नमः । 

ॐ आं आत्मने नमः । 

ॐ अं अन्तरात्मने नमः । 

ॐ पं परमात्मने नमः । 

ॐ ह्रीं ज्ञानात्मने नमः ।

फिर केसरों में पूर्वादि ८ दिशाओं में तथा मध्य में निम्नलिखित मन्त्रों से विमला आदि पीठशक्तियों का पूजन करना चाहिये , 

यथा :


पूर्वादिदिक्षु – 


ॐ विमलायै नमः ।
ॐ उत्कर्षिण्यै नमः ।
ॐ ज्ञानायै नमः ।
ॐ क्रियायै नमः ।
ॐ योगायै नमः ।
ॐ प्रह्व्यै नमः ।
ॐ सत्यायै नमः ।
ॐ ईशानायै नमः ।


मध्ये – ॐ अनुग्रहायै नमः ।

और फिर आसन मन्त्र से इस पूजित पीठ पर आसन देकर ध्यान , आवाहन आदि उपचारों से मूल मन्त्र से पञ्चपुष्पाञ्जलि समर्पणपर्यन्त हनुमान् जी का विधिवत पूजन करना चाहिये।

Hanuman ji Mantra Avaran Pooja आवरण पूजा : केसरों में अङ्गपूजा तथा दलों पर तत्तद् नामों वाले हनुमान् का पूजन करना चाहिये । रामभक्त , महातेज , कपिराज , महाबल ,द्रोणाद्रि हारक , मेरु-पीठकार्चनकारक , दक्षिणाशाभास्कर तथा सर्वविघ्ननिवारक— इन नामों का पूजन कर दलों के अग्रभाग में वानरों का पूजन करना चाहिये । 

सुग्रीव , अङ्गद , नील , जाम्बवन्त , नल , सुषेण , द्विविद एवं मैन्द – ये वानर हैं । और फिर दसों दिक्पालों का पूजन करना चाहिये ।

आवरण पूजा में पूर्वोक्त विधियों से केसरों में आग्नेयादि क्रम से अङ्गपूजा तदनन्तर दलों में रामभक्तादि नामों से हनुमान् जी का पूजन करना चाहिये उसके बाद वानरों का दलों के अग्रभाग में पूजन करना चाहिये 

फिर दसों दिक्पालों का पूजन करना चाहिये ।

इस प्रकार से आवरण-पूजा करने के उपरान्त धूपदीपादि से विधिपूर्वक हनुमान जी का पूजन करना चाहिये।

हनुमान जी मंत्र :  हौं ह्स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं हनुमते नमः “ 

काम्यप्रयोग : इस प्रकार मन्त्र सिद्ध हो जाने के उपरान्त अपना अथवा दूसरे का अभीष्ट कार्य करना चाहिये । केला , बिजौरा नींबू , एवं आम इन फलों से १हजार आहुतियाँ देकर २२ ब्रह्मचारियों एवं ब्राह्मणों को भोजन-वस्त्र-दानादिकों द्वारा संतुष्ट करना चाहिये । 

ऐसा करने पर महाभूत , विष एवं चोर आदि के उपद्रव तथा विद्वेष करने वाले ग्रह एवं दानवादि शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।


आशा रखता हु -के आप इस अदभुत और गोपनीय हनुमान जी मंत्र विधि को अपने जीवन में उतारेंगे और सुख सौभाग्य- शांति का अनुभव करेंगे । जय श्री राम ।

श्री हनुमान चरणों में प्रणाम ।

नीरव हिंगु 

हनुमान दर्शन अभिलाषी