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महामृत्युंजय मंत्र क्या है? Mahamrityunjay Mantra in Hindi

शास्त्रों में लिखा है, महामृत्युंजय महामंत्र वह मंत्र है जो सभी प्रकार के रोगों को नष्ट करने में सहायक है। यह वह मंत्र है जो स्वस्थ जीवन प्रदान करने में और दीर्घायु प्राप्त करने में सहायक है इसीलिए इस मंत्र को महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है।

मेरे कहने का तात्पर्य है कि महामृत्युंजय मंत्र वह नहीं है कि जब कोई मृत्यु शैया पर जाता है  और केवल मंत्र जप करने से ही उसकी मृत्यु को टाला जा सकता है। विद्वानों का भी यह मत है यदि जो साधक प्रतिदिन महामृत्युंजय मंत्र का जप (१०८) करता है, उसके सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और वह लंबी आयु प्राप्त करता है।

एक पौराणिक कथा है जो आपको सुनाने का मन हो रहा है,  एक बार की बात है , कई ऋषियों द्वारा एक बालक को चिरंजीवी होने का आशीर्वाद देने के लिए – ऋषियों का समूह आया पर बाद में  उन ऋषियों को पता लगा कि इस इस बालक का तो  अल्प आयु का योग है मतलब केवल 10 वर्ष की ही आयु हैI 

उन्हें यह भी बिलकुल स्पष्ट थी कि काल अपनी कार्यपद्धति  कभी नहीं छोड़ता।  वह भी परमात्मा द्वारा बनाया गया एक निश्चित नियम से बंधा हुआ है, अर्थात काल भी अपने नियमों से बंधा हुआ है, वह उससे मुक्त नहीं हो सकता।

पर केवल परब्रह्म परमात्मा अर्थात भगवान महादेव ही उस काल के नियमों से परे हैं और महाकाल ही उस काल और नियम को बदल सकते हैं।

इस बात को ध्यान में रखते हुए सभी ऋषियों ने बालक ऋषि को महामृत्युंजय मंत्र जप और उपासना करने का उपदेश दिया और चले गए।  बालक तब तक उस महामंत्र का जाप करता  रहा जब तक उसने स्वयं अकाल मृत्यु से  नहीं दिया ।

कथा यह बताती है कि समय बीत गया और जो समय चक्र में जो लिखा था वही घटना घटित हुई – उस समय-अवधि पर यम के दूत उस बालक ऋषि को लेने के लिए आ खड़े हो गए। लेकिन भगवान शिव की उपासना में लीन बालक की आत्मा उसके पकड़ से दूर हो गई ।

उसके पश्चात स्वयं मृत्यु के देवता यमराज को ही बालक को लेने आना पड़ा ।श्री यमराज जी का भयंकर रूप देखकर बालक  डर के मारे भगवान शिव को अपनी बाहों में बांध लिया और वह बालक शिव स्तुति करने लगा। 

बालक की शिव स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शंकर साक्षात वहां प्रकट हो गए और उनके हुँकार  शब्द  पृथ्वी   – शिवजी ने कहा,” यमराज जो मेरे इस महामृत्युंजय मंत्र का जाप करता है तो उसके पास भूलकर भी कभी नहीं जाओगे “और  भगवान शिव के इस कथन को सुनकर यमराज खाली हाथ यम लोक चले गए तब से ही व महाकाल की आज्ञा का पालन कर रहे हैं।

यह कथा में जो बालक ऋषि है वह और कोई नहीं स्वयं महर्षि मार्कंडेय ऋषि हैं जो आज भी एक चिरंजीवी माने जाते हैं।

यहाँ एक बात मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि महामृत्युंजय मंत्र से ही रोग का निवारण तो हो सकता है पर यदि आपकी मृत्यु की निश्चित अवधि हो जाती है उसके बावजूद भी यदि आप मंत्र जाप करते हैं तब संभावना है कि महामृत्युंजय मंत्र शायद काम ना करें । क्योंकि ईश्वरीय विधि विधान के अनुसार कार्य करने पर ही सफलता मिलती है और ब्रह्मांड में ईश्वर विधान में हस्तक्षेप करने पर उस ज्योतिष या उस विद्वान को भी हार मानना पड़ता है।

अंत: किसी भी ज्योतिष, वास्तु शास्त्री , पंडित, आध्यात्मिक गुरु को चाहिए कि ईश्वर के विधान में हस्तक्षेप करने से बचे अन्यथा उसे अपने जातक/शिष्य का कर्मफल निश्चित ही भोगना पड़ेगा ।

Mahamrityunjay Mantra and Mahashivratri 2024

Mahashivratri Kab Hai ? महाशिवरात्रि कब है ?

महाशिवरात्रि इस साल २०२४ में माघ कृष्णा पक्ष्य १३ ( त्रयोदशी ) अर्थांत ०९ मार्च २०२४ १२:०७ Am से सुरु होकर दोहपर को ३:०७ pm – ०९ मार्च २०२४ को समाप्तः होगा ।

महाशिवरात्रि 2024 में महामृत्युंजय मंत्र ( Mahamrityunjay Mantra ka Jaap ) जाप करने से क्या होता है? Mahamrityunjay Mantra in Mahashivratri 2024

इस चमत्कारी महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से यह बात निश्चित है कि नियमित जप करने से महामृत्युंजय देवता प्रसन्न होते हैं,आपके रोग निवारण में सहायता करते हैं और शरीर स्वस्थ और संतुलित बना रहता है इसीलिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप प्रतिदिन प्रत्येक व्यक्ति को करना ही चाहिए।

इसके अलावा ( Mahamrityunjay Mantra ) महामृत्युंजय मंत्र का जाप विशेष रूप से नीचे लिखी परिस्थितियों में आप मंत्र जाप कर सकते हैं जैसे कि-

१) किसी भी प्रकार का महा भयंकर रोग हो या मृत्यु तुल्य रोग की उपस्थिति में हैं। 

२) किसी भी प्रकार का अज्ञात रोग हो (अर्थात ऐसा रोग जो मेडिकल साइंस समझ नहीं पा रहा हो या कोई भी डॉक्टर रोग का निदान (diagnose) नहीं कर पा रहा हो)

३) आपके नगर, शहर, या देश में महामारी के प्रकोप से बचने के लिए भी इस मन्त्र का जाप  किया जा सकता है।

४) राज्य के कार्य में बाधा  या आपका राज्य हाथ से जा रहा हो।

५) धन या व्यापार में बहुत हानि हो रही हो।

६) अकाल मृत्यु का योग हो या ऐसी कोई संभावना हो।

७) मेलापक में रूप में मृत्यु का भय हो।

८) घर में पारिवारिक क्लेश उत्पन्न हो गया हो।

महामृत्युंजय मंत्र का जाप कब करना चाहिए और किस मुहूर्त में मंत्र साधना शुरू करनी चाहिए?
Mahamrityunjay Mantra Timing on Mahashivratri 2024

1) पहले मैं मुहूर्त की बात करूंगा कि यदि आपको मुहूर्त शास्त्र का ज्ञान ना हो तो आप प्रदोष के दिन या किसी भी सोमवार से या किसी भी महीने की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से महामृत्युंजय मंत्र का जाप शुरू कर सकते हैं।

2) आपके जीवन में किस भी प्रकार के शत्रु से आक्रमण हो जाने की संभावना हो आप घर में या गांव में महामारी जैसी भयंकर बीमारी फैलने की अवस्था हो तो उसके लिए एक करोड़ की संख्या में मंत्र जाप करना चाहिए।

3) किसी भी प्रकार के अशुभ विचार या बुरे स्वप्न देखने पर महामृत्युंजय मंत्र जप करने से नकारात्मक ऊर्जा से बचा जा सकता है।

4) किसी भी प्रकार के लंबी या छोटी यात्रा पर जा रहे हो उस समय 1000 मंत्र जाप करना आवश्यक माना गया है।

5) यदि कोई लंबी बीमारी या भयंकर पीड़ा हो रही हो तब महामृत्युञ्जय  मंत्र का सवा लाख जाप करना चाहिए।

6) अकाल मृत्यु जैसे कि जल में डूबकर मृत्यु होना किसी बड़ी लंबी इमारत से गिर जाने का भय होना इत्यादि अवस्था में महामृत्युंजय मंत्र जप का कम से कम 10,000 मंत्र अनुष्ठान करना चाहिए।

7) राज्य प्राप्ति के लिए अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए समाज में मान पद और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए विद्वानों का मत है मृत्युंजय मंत्र का सवा लाख और साथ में दशांश हवन, दशांश तर्पण मार्जन, और ब्राह्मण भोजन करने से लाभ अवश्य होता है।

महामृत्युंजय मंत्र के अलग प्रकार मान गए हैं, उसमें से कुछ मंत्र के विभिन्न रूप आपके सामने प्रस्तुत करता हूं।

Mahamrityunjay Mantra

महामृत्युंजय मंत्र के विभिन्न स्वरूप-Mahamrityunjay Mantra Mantra Ka Swaroop

प्रचलित महामृत्युंजय मंत्र जो कि त्रंबकेश्वर मंत्र से भी जाना जाता है उसके अलावा पुराण में और मंत्र शास्त्रों में कई प्रकार के मृत्युंजय मंत्र का स्वरूप कुछ इस प्रकार है।

एकाक्षरी श्री महामृत्युंजय मंत्र -Ekashari Mahamrityunjay Mantra – ह्रौं 

एकाक्षरी श्री महामृत्युंजय मंत्र का दो लाख जप करना चाहिए और साथ ही साथ विधान के अनुसार दशांश हवन तर्पण मार्जन और ब्रह्मा भोजन करने का विधान है।

त्र्यक्षरी श्री महामृत्युंजय मंत्र Traakshari Mahamrityunjay Mantra ॐ जूम स : ॥

त्र्यक्षरी श्री महामृत्युंजय मंत्र का तीन लाख जप करने का पुनश्चरण है और कुछ मंत्र शास्त्री का यह भी मत है कि महामृत्युंजय मंत्र करने के पश्चात साधक को गाय के घी और शहद को मिलाकर के दशांश हवन करना चाहिए। इससे  अकाल मृत्यु और वायु के रोगों में लाभ मिलता है और पुनश्चरण करने के बाद रोगी को चाहिए कि वह प्रतिदिन एक माला मंत्र जप करता रहे। 

चतुर्थ अक्षर श्री महामृत्युंजय मंत्र Chatur Mahamrityunjay Mantra ॐ ह्रौं जूम स : ॥

चतुर्थ अक्षर श्री महामृत्युंजय मंत्र का मंत्र जाप करने से किसी भी प्रकार का बुखार शांत हो जाता है। इसकी संख्या शास्त्रों में चार लाख और उसके पश्चात विधि के अनुसार दशांश हवन तर्पण मार्जन और ब्रह्मा भोजन अनिवार्य है।

अष्टाक्षरी श्री महामृत्जुंजय मंत्र Asthashari Mahamrityunjay Mantraह्रीं ॐ नमः शिवाय ह्रीं ॥

अष्टाक्षरी श्री महामृत्जुंजय मंत्र का 800000 मंत्र जप करना चाहिए और वही विधान के अनुसार दशांश हवन तर्पण मार्जन और ब्रह्मा भोजन। कहते हैं मंत्रा साधक को भौतिक संपदा में सहायक है और इसीलिए विद्वानों का मानना है कि वटवृक्ष के नीचे बैठकर जप करने से भौतिक संपदा प्राप्त होती है ।

नवाक्षरी श्री महामृत्युंजय मंत्र Navakshari Mahamrityunjay Mantra ॐ जुम स : पालय पालय ॥

नवाक्षरी शिव महामृत्युंजय मंत्र का जाप 25000 माना गया है। यह सामान्य लोगों ने निर्धारण करने में बहुत ही कारगर साबित हुआ है।

दशाशरी शरी महामृत्जुंजय मंत्र Dus-Akshari Mahamrityunjay Mantra ॐ जूम स: मम पालय पालय ॥

दशाशरी महामृत्जुंजय मंत्र में जहां पर मम लिखा है उस जगह पर रोगी का नाम ले ( यदि रोगी स्वयं मंत्र जपना कर रहा हूं और आप या ब्राह्मण – रोगी के लिए मंत्र जाप कर रहे हो ) और यदि स्वयं अपना मंत्र जाप करने में सक्षम हो तो मम शब्द ही बोला जाएगा।

पंचदशाक्षरी श्री महामृत्युंजय मन्त्र -PanchaDusakshari Mahamrityunjay Mantra ॐ ह्रौं जूम स : मम पालय पालय स: जूम ह्रौं ॐ ॥

पंचदशाक्षरी श्री महामृत्युंजय मन्त्र किसी भी प्रकार का रोग निवारण करने में सक्षम है। इस महामंत्र की सवा लाख जप करने का विधान है और साथ ही भी नियम के अनुसार दशांश हवन तर्पण मार्जन और ब्रह्मा भोजन।

शिवपुराणोक  त्रंबकेश्वर मंत्र – ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

शिवपुराण में त्रंबकेश्वर मंत्र भारतीय समाज में काफी प्रचलित है और कई जनसामान्य यही समझते हैं कि मृत्युंजय मंत्र मतलब त्रंबकेश्वर मंत्र  होता है। परन्तु आपको यह ज्ञान होना चाहिए कि मृत्युंजय मंत्र के कई प्रकार हैं जो ऊपर मैंने वर्णन किए हैं।

इस महामंत्र का जाप सवा लाख करना चाहिए और साथ ही नियम के अनुसार दशांश हवन तर्पण मार्जन और ब्रह्मा भोजन का भी आयोजन किया जाना चाहिए।

विद्वानों का मानना है त्रंबकेश्वर मंत्र का जाप करने से पूर्व भगवान गणेश भगवान सदाशिव मां पार्वती सहित प्रतिमा की पूजा अर्चना भी होनी चाहिए।

यदि आपके पास भगवान शिव की प्रतिमा का अभाव हो शिवलिंग भी उपयोग में ला सकते हैं । शिवलिंग का पूजन करने के पश्चात 108 बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ाएं पर यह ध्यान रखें – बेलपत्र का चिकना भाग ही शिवलिंग पर चढ़ाएं।

शिवपुराणोक  त्रंबकेश्वर मंत्र का अर्थ (भावना) – 

हम तीन नेत्रों वाले ईश्वर की उपासना करते हैं , हम सुगंध युक्त और पुष्टि वर्धन अर्थात पुष्टि करते हैं और उर्वारिक की भांति मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाए अमृत से नहीं , ऐसे महेश्वर को हम प्रणाम करते हैं। 

त्रंबकेश्वर  मंत्रों का स्वरूप –

ब्रह्मा जी के अनुसार इस महामंत्र तीन  प्रकार के होते हैं जैसे के मृत्युंजय मंत्र,  महामृत्युंजय, और मृत संजीवनी मृत्युंजय मंत्र।

मृत्युंजय मंत्र Mrityunjay Mantra – 

ॐ भू: ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्व भुव: भू: ॐ स: जूम ह्रौं ॐ ॥

महामृत्युंजय मंत्र Mahamrityunjay Mantra – 

ॐ ह्रौं ॐ जूम ॐ स : ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्व: ॐ भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ ॥

मृत संजीवनी मंत्र Mrit Mahamrityunjay Mantra

ॐ ह्रौं ॐ जूम ॐ स: ॐ भू ॐ र्भुव: ॐ स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्व: ॐ भुव: ॐ भू: ॐ स: ॐ जूं ॐ हौं ॐ॥

असुरों के आचार्य श्री शुक्राचार्य जिस विद्या के प्रभाव से मृत असुरों को जीवित कर लेते थे वह महामंत्र जिससे मृत संजीवनी विद्या भी कहते हैं तंत्र शास्त्रों के ग्रंथों में इस प्रकार यह मंत्र दिया गया है जिसमें मृत्युंजय मंत्र और गायत्री मंत्र का  संयुक्त स्वरूप है और वह मंत्र कुछ  इस प्रकार है।

शुक्र विद्या मंत्र / मृत संजीवनी विद्या मंत्र – Shukracharya Krit Mahamrityunjay Mantra  

ॐ ह्रौं जूम स: ॐ ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं त्र्यम्बकं यजामहे भर्गो देवस्य धीमहि सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् धियो यो न: प्रचोदयात् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्व भुव: भू: ॐ स: जूम ह्रौं ॐ ॥

महामृत्युंजय मंत्र अनुष्ठान MahaMrityunjay Mantra Anusthan

विशिष्ट मनोकामना पूर्ति के लिए मंत्र जाप करने के लिए कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक माना गया है। इसमें मंत्र के लिए एक विशिष्ट संख्या में जप करना उसका दशांश हवन तर्पण मार्जन ब्रह्मा भोजन निश्चित किया गया है। महामृत्युंजय मंत्र के अनुष्ठान के लिए भी कुछ विशिष्ट नियम है जिसका पालन करने से निश्चित रूप से त्वरित सफलता मिलती है।

लघु अनुष्ठान –विद्वानों का मानना है 24000 मंत्र जाप करके उसका दशांश हवन तर्पण मार्जन और ब्रह्मा भोजन करना चाहिए।

मध्यम अनुष्ठान – 3,00000 का मंत्र जाप होता है और नियम के अनुसार उसका दशांश हवन तर्पण मार्जन और ब्रह्मा भोजन करना चाहिए। 

महा अनुष्ठान – शास्त्र कहता है जितने अक्षरों का मन्त्र तो होता है, मन्त्र  लाख का अनुष्ठान करने से महा अनुष्ठान कहलाता है। जैसे की , १० अक्षर वाला मंत्र होने पर १० लाख का मंत्र जाप करना आवश्यक मन गया है ।और नियम के अनुसार उसका दशांश हवन तर्पण मार्जन और ब्रह्मा भोजन करना चाहिए।

लघु अनुष्ठान को 9 दिन में 27 माला प्रतिदिन के हिसाब से मंत्र जप किया जाता है।

मध्यम अनुष्ठान में 40 दिन में माला प्रतिदिन के हिसाब से जब करने का नियम है।

महाअनुष्ठान में 66 माला प्रतिदिन के हिसाब से जप करना चाहिए।

विभिन्न कार्यों के लिए शास्त्रों में अलग-अलग ( Mahamaritiyunjay Mantra ) मंत्र का संख्या बताया है जैसे कि-

१) भय से छुटकारा पाने के लिए कम से कम 1100 मंत्र जाप प्रतिदिन करना चाहिए।

२) किसी भी प्रकार के रोग से मुक्ति के लिए कम से कम 11000 मंत्र जप प्रतिदिन करना चाहिए।

३) अकाल मृत्यु के निवारण के लिए आर्थिक उन्नति के लिए और पुत्र प्राप्ति के लिए 100000 मंत्र जाप का अनुष्ठान करना चाहिए।

४) अनुष्ठान करते समय साधक को चाहिए कि शुभ मुहूर्त का ध्यान रखना चाहिए यदि मुहूर्त शास्त्र का ज्ञान ना हो तो जैसे कि मैंने बताया किसी भी सोमवार से या शुक्ल पक्ष के त्रयोदशी से या प्रदोष काल से अवश्य महादेव उपासना या शिव मंत्र अनुष्ठान शुरू कर सकते हैं।

५) भगवान शिव के मंत्र अनुष्ठान करते समय सामने चौरंगी पर/ बाजोट पर सफेद रंग का वस्त्र/ आसन बिछाकर, उस पर भगवान शंकर का या मूर्ति स्थापित करें। यदि मूर्ति आपके पास ना हो तो शिवलिंग स्थापित कर सकते हैं।

६) भगवान शिव की उपासना में दिशा का महत्व है अतः साधक को चाहिए कि अपना मुंह पूर्व दिशा की ओर रखकर उपासना शुरू करें।

७) गाय का घी का शुद्ध घी का दीपक, अखंड रूप से शिव उपासना में रहना चाहिए।

८) माला मंत्र जप के लिए शिव उपासना में केवल रुद्राक्ष माला का ही उपयोग करें।

९) आसन सफेद रंग का हो और उन का आसान होना चाहिए ।

१०) मंत्र उच्चारण में प्रत्येक शब्द शुद्ध और बहुत धीमे से  बोलना चाहिए।

११) यदि साधक चाहे तो मंत्र का उच्चारण मन ही मन कर सकता है।

१२) पूरे साधना काल में संभव मौन व्रत धारण करके रखें और बेकार की बातों और बहस से दूर रहे।

१३) साधना काल में भूमि पर सेवन करें और अपना बिस्तर – कपडे – आसान माला को किसी भी प्रकार से अन्य के स्पर्श से दूर रखे ।

१४) अपना काल में अखंड ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें और सदा मन वचन और कर्म से सत्य वचन का पालन करें।

हवन सामग्री और महामृत्युंजय मंत्र अनुष्ठान – Mahamrityunjay Mantra Havan Vidhaan

विभिन्न प्रयोगों के लिए तांत्रिक ग्रंथों में हवन सामग्री का निर्देश दिया गया है जैसे कि,

१) सामान्य मंत्र जाप और हवन में गाय का देसी घी, जौ ( यव ) , काले तिल, चावल, चीनी और पंचमेवा का मिश्रण हवन करने का विधान है। पंजाबी आपके पास यह सारी सामग्री ना हो तो केवल गाय के घी से भी आहुति करना पर्याप्त माना गया है।

२) यदि शांति कर्म ( जैसे गृह सुख शांति में , व्यापार वृद्धि और विश्व शांति आदि कर्मो को शांतिकर्म कहते है ) कार्य के लिए महामृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान कर रहे हो तो उसमें दूध दही दूर्वा , बिल्वफल , काले तिल, खीर, पिली सरसो , पलाश , शहद और खेर – इन सामग्री का मिश्रण बनाकर हवन करना चाहिए ।

३) किसी भी प्रकार की बीमारी से जल्दी मुक्ति यहां दीर्घायु प्राप्त करने के लिए गुरुच नाम की लकड़ी से हवन करना चाहिए और यदि पलाश की लकड़ी /आम की लकड़ी उपलब्ध हो तो उसका उपयोग अवश्य करना चाहिए।

४) लक्ष्मी प्राप्ति के लिए दिन में बिल्वफल से हवन करना अच्छा माना गया है।

५) आध्यात्मिक उन्नति के लिए पलाश की लकड़ी से हवन करना श्रेष्ठ माना गया है।

६) सुख और समृद्धि प्राप्ति के लिए और जापान व्यापार में वृद्धि के लिए वटवृक्ष की समिधा का उपयोग करें।

७) सौंदर्य प्राप्ति के लिए गए खैर की लकड़ी का उपयोग करें ।

८) शत्रु नाश के लिए पीली सरसों का हवन करना चाहिए।

९) तंत्र बाधा से मुक्ति के लिए दही से हवन करना चाहिए ( तंत्र बाधा के लिए किसी योग्य गुरु यह जानकार साधक से परामर्श अवश्य लेना चाहिए)

१०) वशीकरण कार्य के लिए गाय का दूध और गाय का घी से हवन करना चाहिए।

११) लंबी बीमारी में पुष्कर्मूल की लकड़ी से और शुद्ध गाय का घी दूध और अन्य की आहुति देना चाहिए।

महामृत्युंजय मंत्र और तर्पण क्रिया,मार्जन क्रिया और ब्राह्मण भोजन – Mahamrityunjay Mantra aur Tarpan Kriya

महामृत्युंजय मंत्र अनुष्ठान में मंत्र जप करने के पश्चात उसका दशांश हवन करें और दशांश हवन करने के बाद महामृत्युंजय तर्पयामि कहते हुए दूध और जल से मिश्रित- तर्पण करना चाहिए। तर्पण का दशांश भाग का मार्जन करना चाहिए और मार्जन के दशांश भाग (दशवे भाग) का ब्राह्मण भोजन करना चाहिए ।

महाशिवरात्रि २०२३ के शुभ अवसर पर आप सबको शुभ कामना और देवों  के देव महादेव पर आप सब पर दया दृष्टि  और शिवभक्ति बनी रहे – इसी कामना के साथ , मै यहाँ पूर्णविराम लेता हूँ 

शिवदर्शन अभिलाषी,

नीरव हिंगु