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यंत्र साधना विज्ञान : अंधविश्वास या वैज्ञानिक आधार

यंत्र विद्या भी यंत्र साधना  या मंत्र साधना का ही एक अभिन्न अंग माना गया है। मंत्र और तंत्र विद्या का एक अभिन्न अंग हैं  – मंत्र,  यंत्र और देवता तीनों एक दूसरे से संबंध रखते हैं ।

यंत्र की रचना, रेखाओं का मिलान, बीज अक्षर और अलग-अलग  विशिष्ठ वर्ण का निर्माण,  यह सभी  यंत्र की रचना और साधना का एक अंग माने गये  हैं । 

तंत्र एक सिस्टम है, एक प्रणाली है जिसमे मंत्र और उसकी शक्तियां, उसका प्रभावशाली माध्यम बनते हैं और इसमें यन्त्र निर्माण के बाद, एक तांत्रिक को मंत्रों  द्वारा अभिमंत्रित करके इच्छित फल की प्राप्ति हो सकती है ।

यन्त्र का दूसरा अर्थ माना गया है – धारण करना और लौकिक अर्थ में यदि मैं कहूं तो यंत्र का अर्थ होता है वह स्थान जहां देवी-देवताओं का वास होता है।

जैसे मनुष्य का आवास उसके घर पर रहता है उसी प्रकार देवी-देवताओं का आवास निर्मित यंत्रों के अंतर्गत होता है।

यंत्र साधना में यंत्र-धारण करने का मुख्य कारण

हमने कई बार देखा है कि  जातक के लिए यंत्र को धारण करने का विधान बनाते हैं पर उस दिन यंत्र के धारण करने के पहले – उस यन्त्र का पूजन और दर्शन करने मात्र से यंत्र के अंदर जो स्थापित देवी देवता है या यंत्र के अंदर में स्थित मंत्र के जो इष्ट देवता है उसे उस मंत्र की शक्ति साधक के ह्दय में संपर्क स्थापित हो जाती है।

एक प्रकार से साधक का मन एकाग्र करने से साधक की आंतरिक शक्ति से जुड़ने से मनुष्य को जल्दी ही सफलता मिलती है ।

मंत्र और यंत्र में एक बहुत बड़ा भेद है और वह भेद यह है कि मंत्र साधना मन में उच्चारित करके की जाती  है। मंत्र साधना में मंत्र सदा ही कल्याणकारी और विनाशकारी दोनों ही होते हैं। दूसरी ओर यंत्र साधना में यंत्र की रचना में थोड़ी सी बड़ी त्रुटि /भूल हो जाने पर पूरा का पूरा यन्त्र निष्क्रिय और बेकार हो जाता है। 

इसके साथ ही कभी-कभार विपरीत पल/unfavourable timesमें साधक या जातक को हानि भी पहुंच सकती है । इसीलिए यन्त्र साधना में बहुत ही बारीकी से अध्ययन करने के बाद ही यंत्र की साधना करनी चाहिए।

शास्त्रों के अनुसार यंत्र ब्रह्म का साकार स्वरूप और देवता का घर माना  गया है और इसीलिए मंत्र को निराकार ब्रह्म कहा गया है और जनता को साकार ब्रह्म कहा गया है।

यंत्र साधना और श्रद्धा भाव

यंत्रों की रचना करते समय जातक को या रचना करने वाले को मन में शुद्धता और श्रद्धा भाव होना चाहिए क्योंकि यदि अंतःकरण शुद्ध होगा, अंतर की शुद्धता की गुप्त आंदोलित शक्ति (स्पंदन)  और उस मंत्र और यन्त्र  का सहयोग होने से नकारात्मक विचार,अहंकार आदि का असर समाप्त हो जाता है और शुद्ध अंतःकरण से जब यंत्र बनता है तब वह पवित्र भावना से लिप्त होकर अपनी सफलता की ओर खींचकर लेकर जाता है।

यंत्र के प्रकार

तांत्रिक ग्रंथों के अनुसार यंत्र के दो प्रकार बताए गए हैं, पहला ताबीज के रूप में पहना जाता है और दूसरा पत्र के रूप में।

ताबीज के रूप में – इसको गले में या बाँह पर धारण किया जाता है।

पत्र के रूप में – इसको अपने साधना कक्ष में नित्य पूजन और दर्शन करते हैं।

ऊपर बताएं दोनों प्रकार को यंत्रों का बनाने में विशेष सामग्री का उपयोग किया जाता है जिसमें अलग-अलग प्रकार का सामग्री का इस्तेमाल होता है जैसे के सोना, चाँदी,और ताम्रपत्र का उपयोग।

किसी-किसी तंत्र के ग्रंथों में पंच-धातु से या अष्ट-धातु का उपयोग करके यंत्र की रचना की जाती है। परंतु आज के कलयुग में टेक्नोलॉजी के कारण  ताम्रपत्र के ऊपर यन्त्र बनाना काफी सरल माना गया है क्योंकि इसमें टेक्नोलॉजी का उपयोग (मशीनरी से) करके ताम्रपत्र के ऊपर यंत्रों  का बनाना काफी सरल हो गया है ।

पर इस टेक्नोलॉजी से बनाये गए यन्त्र में एक कमी है और वह है – शुद्धता और साधना के नियमों का पालन जो टेक्नोलॉजी (मशीन) नहीं कर सकता और मैं समझता हूँ कि इस कमी के कारण  मशीन के  द्वारा बने हुए यन्त्र का उपयोग जो करते हैं, उसकी  उपयोगिता/परिणाम ( रिजल्ट्स) संदिग्ध होती है या खत्म ही हो जाती है।

यंत्र की रचना और सामग्री

जैसा मैंने बताया , यंत्र बनाने के समय,अलग-अलग सामग्री का उपयोग किया जाता है विशेष रूप से ताम्रपत्र या भोजपत्र पर ताम्रपत्र और भोजपत्र का अभाव हो या उपलब्ध नहीं हो तो कागज पर भी विशेष रूप से या विशेष स्याही (ink)  से यंत्र का निर्माण किया जा सकता है।

यंत्र के निर्माण होने के बाद, विशेष  वेद मंत्र से प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और इस प्रकार यन्त्र चैतन्य और सिद्धियुक्त बन जाता है और इसके बाद ही, जिसके लिए यह यन्त्र बनाया गया हो, उसको अपने गले में या बाहों में धारण करना चाहिए।

जैसा कि मैंने बताया टेक्नोलोजी  से बनाया गया यन्त्र किसी काम का नहीं होता और शरीर में धारण करने के लिए अधिक उपयोगी और प्रभावशाली होने के लिए – आपको उस यन्त्र को भोजपत्र पर निर्माण करना चाहिए क्योंकि भोजपत्र पर आध्यात्मिक किरणें और स्पंदन को ग्रहण करने की क्षमता अन्य सामग्री की अपेक्षा अधिक होती है।

यंत्र पर कोण , त्रिभुज , चतुर्भुज ,अष्टदल और अन्य प्रकार की आकृति बनाकर उसके बीच में विशिष्ट अंक या बीज मंत्र भरे जाते हैं जिससे कि यन्त्र में अत्यंत उच्च स्तर की आध्यात्मिक स्पंदनों का संचार होता है और संचार होने के कारण देवी-देवताओं की सूक्ष्म रूप से उस यन्त्र में स्थापना हो जाती है।

इसके पश्चात विशिष्ट मंत्रों से उसको सिद्ध करके विधि पूर्वक उसका पूजन और हवन के द्वारा उस यन्त्र की क्षमता को उर्जित किया जाता है और उसके बाद ही उसको उपयोग में लाने से सफलता मिलती है।

सनातन धर्म में कई यन्त्र अपने आप में दैवीय-शक्ति से संपन्न होते हैं अतः इन (कुछ विशेष यंत्रों) को हम दिव्य यंत्र भी कह सकते हैं। इन यंत्रों को सिद्ध करने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती। उदाहरण के लिए श्री यंत्र, सिद्ध बीसा यंत्र, काली यंत्र दुर्गा यंत्र, चौसठ योगिनी यंत्र, नवग्रह यंत्र, महालक्ष्मी यंत्र और ऐसी कई यंत्र है जिनको बिना सिद्ध किए हैं पूजन अथवा धारण अथवा पूजन और धारण करने से कम समय में मनोकामना पूर्ति होती है।

पर कुछ यन्त्रों  की  सिद्धि प्राप्त करने का विधान है – जैसे सवा लाख बार यन्त्र लेखन करने से यन्त्र की सिद्धि होती है और इन यन्त्र सिद्धि में गुरु का मार्गदर्शन हो बहुत ही जरुरी है ।

तांत्रिक ग्रंथों के अनुसार अद्भुत और समर्थन शक्तियों का निवास होता है और यंत्रों में 14 प्रकार की शक्तियों का निवास माना गया है और यह 14 शक्ति निम्नलिखित है।

१) सर्व संशोभिणी

२) सर्व विद्राविहिनी 

३) सर्वाकर्षिणि 

४) सर्वा हलाद कारिणी

५) सर्व सम्मोहिनी 

६) सर्व स्थम्भन कारिणी

७) सर्व जृम्भिणि 

८) सर्व शंकरी 

९) सर्व रंजिनी 

१०) सर्वोन्माद कारिणी

११) सर्वार्थ साधिनी 

१२) सर्व सम्य पूरिनि

१३) सर्व मंत्र मयी

१४) सर्व दद्व  क्षयकरी 

इस १४ प्रकार की शक्तियों को के आधार पर यंत्रों का निर्माण होता है और प्रत्येक यन्त्र का निर्माण उस देव देवी की सुषमा शक्ति के अनुसार निर्माण होनी चाहिए और उसमें रेखाओं बिंदु आदि चिन्ह द्वारा निर्मित विशिष्ट अंक या बिंदु एक समान होने चाहिए।

कई बार यंत्रों के बीच में संख्या बीच बिंदु का बीज और माया बीज  अनेक प्रकार के बीज  मंत्रों का लेखन किया जाता है और इस प्रकार सावधानीपूर्वक निर्माण किए गए यंत्र कम समय में  शक्तिशाली हो जाते है ।

जिस प्रकार सनातन धर्म के अंतर्गत अनेक प्रकार के यंत्रों का निर्माण माना गया है उसी प्रकार अन्य धर्मों में भी जैसे  इस्लाम, ईसाई और सिख धर्म में भी मंत्र तंत्र और यंत्रों का निर्माण की विधि स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। अंतर केवल मंत्र, यंत्र और उसकी लेखनी विधि में काफी देखा गया है उसका प्रभाव मूल रूप से एक ही होता है।

ज्योतिष क्षेत्र और यंत्र साधना का संबंध

ज्योतिष क्षेत्रों में भी मंत्र का और यंत्रों का घनिष्ट संबंध माना गया है। अंक ज्योतिष में भी एक विशिष्ट यंत्र का निर्माण किया जाता है जिसको धारण करने से जातक को उस ग्रह नक्षत्र का अनुकूल प्रभाव प्राप्त होता है।

जैसे कि मैंने बताया ज्योतिष में भी मंत्र और तंत्र का उपयोग किया जाता है वैसे ही वास्तुशास्त्र में भी विशिष्ट प्रकार की यंत्रों का निर्माण होता है। जैसे शनि की साढ़ेसाती की अवस्था में शनि यन्त्र  का निर्माण करके ताबीज़  में धारण करके शनि का मंत्र जाप करने से शनि देव आपके अनुकूल होते है और भगवान शनि देवता का आशीर्वाद प्राप्त होता है जिससे कि मनुष्य का जीवन सुखमय हो जाता है।

न केवल ज्योतिष क्षेत्र में बल्कि अपनी व्यक्तिगत मनोकामना पूर्ति के लिए व्यापार के लिए, आर्थिक समस्या के लिए , विवाह संबंधित बाघा में भी मुझे अद्भुत सफलता प्राप्त हुई है।

वास्तु शास्त्र में कई बार चौसठ योगिनी यंत्र. सिद्ध बीसा यंत्र, आदि अनेक प्रकार का यंत्र का निर्माण करके जब भी उपयोग किया है मुझे हमेशा ही सफलता प्राप्त हुई है। 

शारीरिक और मानसिक रोग और यंत्र साधना का संबंध

रोग निवारण करने में भी यन्त्र अपने आप में अद्भुत कार्य करता है किसी भी प्रकार का रोग हो जैसे कि बुखार, कमरदर्द , प्रसूति के रोग और अन्य प्रकार का दुख दर्द, शारीरिक या मानसिक रोगों में भी अपना चमत्कारिक प्रभाव दिखाता है।

इससे यह सिद्ध होता है कि मंत्र तंत्र का क्षेत्र हो या ज्योतिष क्षेत्रों या वास्तुशास्त्र का क्षेत्र हो किसी भी क्षेत्र, किसी भी समस्या में यन्त्र का निर्माण करके उसका उपयोग कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धर्म का, संप्रदाय का हो, यंत्रों का उपयोग करके अपनी मन की कामना का पूर्ति कर सकता है। 

आने वाले लेखो में  रोग संबधित कुछ यंत्रों (यंत्र साधना) का विवरण दूंगा जिससे आप सामान्य रोगों  को स्वयं उपयोग करके रोग मुक्त हो सकते हैं  ।

काली दर्शन अभिलाषी,

नीरव हिंगु