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Pitru Stotra/ Pitru Stotram : मार्कण्डेय पुराण के अध्याय ९४ के श्लोक ३ से १३ का पितृ स्तोत्र, महात्मा श्री रूचि जी द्वारा रचित है । पितृ पक्ष अपने पितृों की पूजा-उपासना के लिए अत्यंत ही श्रेष्ठ और तुरंत फलदायी माना  गया है । इस पितृ मास के आलावा भी यदि नियमित स्तोत्र पाठ किया जाये  तब भी पितृ देव प्रसन्न होते हैं और अपने कुल के लोगों को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

Pitru Stotram

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Pitru Stotra ke Fayde पितृ स्तोत्रम के पाठ के फायदे 

इस पितृ स्तोत्र के नियमित पाठ से जीवन आने वाली विध्न-बाधा,  व्यापार या नौकरी में रुकावट आना कम हो जाता  है क्योंकि पितृ दोष यदि जन्म कुंडली (लग्न कुंडली) में विद्यमान है तो दोष समाप्त नहीं हो सकता, बस उसके तीव्र असर को अधिक से अधिक कम किया जा सकता है।

इस पितृ स्तोत्र के नियमित पाठ से घर के लड़ाई झगड़े मिटने में सहायक होते हैं और आर्थिक स्थिति में सुधार देखने में आया है।

Pitru Stotram

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॥ पितृ – स्तोत्र ॥ ॥ Pitru Stotra/Pitru Stotram

अर्चितानाममूर्तानां पितॄणां दीप्ततेजसाम् । नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ।। इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा । सप्तर्षीणां तथान्येषां तान्नमस्यामि कामदान् ।। मन्वादीनां च नेतारः सूर्याचन्द्रमसोस्तथा । तान्नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्युदधापि । । नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा । द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः ।। प्रजापते कश्यपाय सोमाय वरुणाय च । योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः ।।

नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु । स्वायम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे || सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा । नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।। अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृ नहम् । अग्नि सोममयं विश्वं यत एतदशेषतः ।। ये च तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः । जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।। तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः। नमो नमो नमस्तेऽस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।

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पितृ – स्तोत्र भावार्थ  Pitru Stotra Meaning ( Pitru Stotram Bhavarth )

जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्य दृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितृों को मैं सदा नमस्कार करता हूं। जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरों को मैं प्रणाम करता हूं।

मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूं। नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितृों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं।

जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितृों को मैं, हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं। सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योग दृष्टि सम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूं।

चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूं। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूं।

अग्निस्वरूप अन्य पितृों को मैं प्रणाम करता हूं, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है। जो पितृ तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टि गोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितृों को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूं। उन्हें बारम्बार नमस्कार है, वे स्वधा भोजी पितृ मुझ पर प्रसन्न हों।

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मार्कण्डेयपुराण में महात्मा रूचि द्वारा की गई पितृों की यह स्तुति ‘पितृ स्तोत्र’ कहलाता है।

पितृों की प्रजापति, कश्यप, सोम, वरुण तथा योगेश्वरों के प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है। इस स्तोत्र की बड़ी महिमा है।

कई विद्वानो का मानना है कि पितृ स्तोत्र के साथ साथ यदि पितृ सूक्तम का भी पाठ किया जाय तो विशेष फल प्राप्त होता है । यथा घर में सुख शांति बनी रहती है ।

इसीलिए यदि संभव हो तो पितृ सूक्तम का पाठ कर ले या किसी पंडित को बुलाकर भी अपने घर में पितृ स्तोत्र और पितृ सूक्तम का पुरे पितृ श्राद्ध महीने में नित्य ५ या ११ या २१ बार पाठ करना चाहिए । मेरा अनुरोध है यदि समय का अभाव ही क्यों नहीं हो तब भी आप स्वयं ही १ या ५ दोनों ही पितृ स्तोत्रम और पितृ सूक्तम का करे ।

आशा रखता हूं, आप इस पितृ पक्ष में पितृ स्तोत्र का पाठ कर अपने पितृ कुल को प्रसन्न कर आशीष प्राप्त करेंगे ।

आपका अपना,
नीरव हिंगु